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September 8, 2024
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महंगाई की मार, 11 लाख से अधिक गरीब परिवारो को झटका, अब नही मिलेगी ये सुविधा

वायस ऑफ पानीपत (देवेंद्र शर्मा):- हरियाणा में इस महीने राशन डिपोओं पर 11 लाख से ज्यादा गरीब परिवारों को सरसों का तेल नहीं मिल सकेगा। बाजार में सरसों के ऊंचे दाम के चलते मंडियों में इस बार सरकारी खरीद एजेंसियां सरसों की खरीद नहीं कर पाई हैं। इससे हरियाणा राज्य सहकारी आपूर्ति और विपणन महासंघ लिमिटेड (HAFFED) के पास सरसों तेल निकालने के लिए एक दाना नहीं बचा है। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ने अगले आदेशों तक राशन डिपोओं में सरसों का तेल नहीं देने के आदेश जारी कर दिए हैं।

हरियाणा में अंत्योदय अन्न योजना (AAY) और गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के परिवारों को हर महीने दो लीटर सरसों का तेल 20 रुपए प्रति लीटर प्रति परिवार की दर से उपलब्ध कराया जाता है। प्रदेश में AAY (गुलाबी कार्ड) राशन कार्डों की संख्या दो लाख 48 हजार 134 और BPL (पीला कार्ड) के आठ लाख 92 हजार 744 राशन कार्ड हैं, जिन्हें रियायती दरों पर सरसों तेल दिया जाता है। इनमें बड़ी संख्या में परिवार को मई का सरसों तेल भी अभी तक नहीं मिल पाया है। सरकार के अगले आदेश तक इन्हें बाजार से महंगी दरों पर सरसों तेल खरीदना पड़ेगा। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अतिरिक्त निदेशक ने सरसों तेल के वितरण में असमर्थता जताते हुए एनआईसी को इस संबंध में लिखित अनुरोध किया है। बता दें कि, इस बार किसानों को खुले बाजार में सरसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य से 2600 से तीन हजार रुपए प्रति क्विंटल तक अधिक दाम मिले हैं। सरकारी एजेंसियां मंडियों में सरसों की खरीद का इंतजार करती रही, लेकिन किसानों ने अधिक रेट मिलने पर सारी सरसों खुले बाजार में बेच दी। इससे अब सरकारी तेल मिलों के सामने सरसों का संकट खड़ा हो गया है।

प्रदेश सरकार को अपनी तेल मिलों के लिए खुले बाजार से सरसों खरीदनी पड़ेगी। प्रदेश सरकार ने इस बार सरसों की खरीद के लिए 4650 रुपए प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय किया था, जबकि किसानों को खुले बाजार में 7000 से 7500 रुपए प्रति क्विंटल तक दाम मिले। पिछले साल 4600 रुपए की एमएसपी पर प्रदेश सरकार ने करीब सात लाख टन सरसों की खरीद की थी। इस बार करीब चार लाख किसानों ने सरसों बेचने के लिए मेरी फसल-मेरा ब्योरा पोर्टल पर खुद का रजिस्ट्रेशन कराया था। साढ़े सात लाख मीट्रिक टन सरसों मंडियों में आने की उम्मीद थी, लेकिन बाजार में ऊंचे भाव के चलते किसानों ने सरकार को अपनी फसल नहीं बेची, जिससे सरकारी खरीद एजेंसियों के हाथ खाली रह गए।

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