वायस ऑफ पानीपत (देवेंद्र शर्मा):- कोरोना मरीजों में काला फंगस की समस्या देखी जा रही है. हवा और जमीन में ये काला फंगस पहले से ही मौजूद है. मगर इसे जैसे ही कोई कमजोर इम्यूनिटी वाला इंसान मिलता है, वो उसके संपर्क में आ जाता है. शरीर के अंदर दाखिल हो जाता है. कोरोना के काल में ये बुरी तरह एक्टीवेट हो चुका है. उन लोगों को इससे सबसे ज़्यादा खतरा है जो कोरोना से अभी भी ठीक हुए क्योंकि उनकी इम्यूनिटी अभी इस लेवल पर वापस नहीं पहुंची होती है जो इसका सामना कर सके. मरीज जितने लंबे वक्त तक अस्पताल में रहेगा और जितनी ज़्यादा उसे स्टेरॉयड, एंटीबायोटिक और एंटीफंगल दवाएं दी जाएंगी. उसे इससे उतना ज़्यादा खतरा बढ़ता जाएगा. हवा में मौजूद ये फंगस सबसे पहले नाक में घुसता है, फेफड़ों के बाद खून के ज़रिए दिमाग तक पहुंच सकता है.
कोरोना महामारी से देश में बचे कोहराम के बीच एक और खतरा सामने आ रहा है। दिल्ली और गुजरात में कोरोना संक्रमण को मात देने वाले लोगों को ब्लैक फंगस यानी काली फफूंद का अटैक देखने को मिल रहा है। यह बीमारी आंखों पर सबसे ज्यादा हमला करता है। कुछ मरीजों में आंखों की रोशनी जाने के मामले सामने आए हैं।
जानिए क्या है Black Fungus के लक्षण
म्यूकॉमिकोसिस या ब्लैक फंगस एक दुर्लभ फंगल संक्रमण है। इसे श्लेष्मा रोग या ज़ाइगोमाइकोसिस भी कहा जाता है। यह एक गंभीर संक्रमण है जो श्लेष्म या कवक के समूह के कारण होता है जिसे श्लेष्माकोशिका कहा जाता है। ये मोल्ड पूरे वातावरण में रहते हैं। यह आमतौर पर हवा से फंगल बीजाणुओं को बाहर निकालने के बाद साइनस या फेफड़ों को प्रभावित करता है। यह त्वचा पर कट, जलने या अन्य प्रकार की त्वचा की चोट के बाद भी हो सकता है।
Black Fungus कब नजर आता है
कोरोना संक्रमण से उबरने के दो-तीन दिन बाद काली फफूंद के लक्षण दिखाई देते हैं। यह फंगल संक्रमण सबसे पहले साइनस में तब होता है जब रोगी कोविड -19 से ठीक हो जाता है और लगभग दो-चार दिनों में यह आंखों पर हमला करता है|
TEAM VOICE OF PANIPAT