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November 20, 2024
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SYL के मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पंजाब के मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

वायस ऑफ पानीपत (सोनम गुप्ता):- सतलुज-यमुना लिंक नहर (एसवाईएल) हरियाणा का हक है और इसके लिए हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल हर संभव कदम उठा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की पुरजोर तरीके से पैरवी करने के बाद अब मुख्यमंत्री ने अपने समकक्ष पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को पत्र लिखा है और स्पष्ट किया कि वे एसवाईएल नहर के निर्माण के रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा या मुद्दे को हल करने के लिए उनसे मिलने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि एसवाईएल को लेकर 4 अक्टूबर, 2023 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक विस्तृत आदेश पारित किया है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ‘निष्पादन जल के आवंटन से संबंधित नहीं है’। मनोहर लाल ने कहा कि हरियाणा का प्रत्येक नागरिक 1996 के मूल वाद संख्या 6 के डिक्री के अनुसार पंजाब के हिस्से में एसवाईएल नहर के निर्माण के शीघ्र पूरा होने की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा है। इसके अलावा, वे अपने लोगों और दक्षिणी हरियाणा में हमारी सूखी भूमि के इस लंबे समय से प्रतीक्षित सपने को साकार करने के लिए कुछ भी करने को हमेशा तैयार हैं। उन्होंने उम्मीद जताई की पंजाब सरकार निश्चित रूप से इस मामले को हल करने में अपना सहयोग देगी।

दरअसल पंजाब के मुख्यमंत्री ने 4 अक्टूबर 2023 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से एक दिन पहले यानी 3 अक्टूबर की तारीख में मुख्यमंत्री मनोहर लाल को पत्र लिखा था और इस मुद्दे को लेकर द्विपक्षीय बैठक करने के लिए समय मांगा था। इससे पहले दोनों के बीच आखिरी बार 14 अक्टूबर, 2022 को द्विपक्षीय बैठक हुई थी। इसके बाद केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने 04 जनवरी 2023 को दूसरे दौर की चर्चा की जिसमें दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री मौजूद थे। यहां गौर करने वाली बात है कि एसवाईएल नहर पर हुई सभी बैठकें पंजाब सरकार के नकारात्मक रवैये के कारण बेनतीजा रही थीं।

 सर्वविदित है कि सर्वोच्च न्यायालय के दो फैसलों के बावजूद पंजाब ने एसवाईएल का निर्माण कार्य पूरा नहीं किया है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों को लागू करने की बजाए पंजाब ने वर्ष 2004 में समझौते निरस्तीकरण अधिनियम बनाकर इनके क्रियान्वयन में रोड़ा अटकाने का प्रयास किया। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रावधान के अंतर्गत भारत सरकार के आदेश दिनांक 24.3.1976 के अनुसार हरियाणा को रावी-ब्यास के फालतू पानी में से 3.5 एमएएफ जल का आबंटन किया गया था। एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न होने की वजह से हरियाणा केवल 1.62 एमएएफ पानी का इस्तेमाल कर रहा है। पंजाब अपने क्षेत्र में एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न करके हरियाणा के हिस्से के लगभग 1.9 एमएएफ जल का गैर-कानूनी ढंग से उपयोग कर रहा है। पंजाब के इस रवैये के कारण हरियाणा अपने हिस्से का 1.88 एम.ए.एफ. पानी नहीं ले पा रहा है।

इस पानी के न मिलने से दक्षिणी-हरियाणा में भूजल स्तर भी काफी नीचे जा रहा है। एसवाईएल के न बनने से हरियाणा के किसान महंगे डीजल का प्रयोग करके और बिजली से नलकूप चलाकर सिंचाई करते हैं, जिससे उन्हें हर वर्ष 100 करोड़ रुपये से लेकर 150 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ता है। पंजाब क्षेत्र में एसवाईएल के न बनने से हरियाणा को उसके हिस्से का पानी नहीं मिल रहा जिसकी वजह से 10 लाख एकड़ क्षेत्र को सिंचित करने के लिए सृजित सिंचाई क्षमता बेकार पड़ी है। हरियाणा को हर वर्ष 42 लाख टन खाद्यान्नों की भी हानि उठानी पड़ती है। यदि 1981 के समझौते के अनुसार 1983 में एसवाईएल बन जाती, तो हरियाणा 130 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्नों व दूसरे अनाजों का उत्पादन करता। 15 हजार प्रति टन की दर से इस कृषि पैदावार का कुल मूल्य 19,500 करोड़ रुपये बनता है।

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