वायस ऑफ पानीपत (कुलवन्त सिंह):- सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात की एक दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात की अनुमति दे दी है.. सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि भारतीय समाज में विवाह संस्था में गर्भावस्था एक जोड़े और समाज के लिए खुशी का स्रोत है.. हालांकि, जब कोई महिला अपनी इच्छा के बिना गर्भवती बनती है तो यह महिला के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है..
इससे पहले 19 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए गुजरात हाई कोर्ट के रवैये पर चिंता जाहिर की थी और मेडिकल बोर्ड से ताजा रिपोर्ट मांगी थी.. कोर्ट ने कहा था कि गुजरात हाईकोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए काफी समय खर्च कर दिया.. जानकारी के मुताबिक, पीड़िता 25 साल की है और उसने सर्वोच्च न्यायालय से गर्भपात के लिए अर्जी लगाई थी.. गुजरात हाई कोर्ट ने सरकारी की नीति का हवाला देते हुए और मेडिकल जोखिम के आधार पर पीड़िता की याचिका को खारिज कर दिया.. गुजरात हाईकोर्ट के इस आदेश को पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई..
गौरतलब है कि शनिवार (19 अगस्त) को गुजरात हाई कोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात न कराने का आदेश दिए। हाईकोर्ट के इस निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जाहिर की.. सर्वोच्च न्यायालय ने कड़े शब्दों में सवाल उठाया कि आखिर गुजरात हाईकोर्ट क्या कर रहा.. सर्वोच्च न्यायालय ने जब इस मामले की सुनवाई के लिए आज की तारीख मुकम्मल की थी, तो हाईकोर्ट ने क्यों फैसला सुनाया। यह संविधान के खिलाफ है.. गुजरात सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शनिवार का हाईकोर्ट का आदेश एक लिपिकीय त्रुटि को ठीक करने के लिए पारित किया गया था.. उन्होंने कहा,”पिछले आदेश में एक लिपिकीय त्रुटि थी और उसे शनिवार को ठीक कर दिया गया था। यह एक गलतफहमी थी.. उन्होंने कहा,”राज्य सरकार के रूप में हम न्यायाधीश से आदेश को वापस लेने का अनुरोध करेंगे।”
TEAM VOICE OF PANIPAT