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November 22, 2024
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पढ़िए क्या होती है पैरोल और फरलो ? गुरमीत राम रहीम को कैसे मिली 21 दिन की आजादी

वायस ऑफ पानीपत (सोनम गुप्ता):- रेप और हत्या के केस में सजा काट रहे बाबा गुरमीत राम रहीम को 4 साल बाद फरलो पर 21 दिन के लिए रिहा किया गया है. ये 21 दिन भी सजा में ही गिने जाएंगे. राम रहीम हरियाणा में रोहतक की सुनारिया जेल में बंद था.

क्या होती है फरलो?

फरलो एक तरह से छुट्टी की तरह होती है, जिसमें कैदी को कुछ दिन के लिए रिहा किया जाता है. फरलो की अवधि को कैदी की सजा में छूट और उसके अधिकार के तौर पर देखा जाता है..फरलो सिर्फ सजा पा चुके कैदी को ही मिलती है. फरलो आमतौर पर उस कैदी को मिलती है जिसे लंबे वक्त के लिए सजा मिली हो.

इसका मकसद होता है कि कैदी अपने परिवार और समाज के लोगों से मिल सके. इसे बिना कारण के भी दिया जा सकता है..चूंकि जेल राज्य का विषय है, इसलिए हर राज्य में फरलो को लेकर अलग-अलग नियम है. उत्तर प्रदेश में फरलो देने का प्रावधान नहीं है.

फरलो और परोल एक ही होता है क्या?

फरलो और परोल दोनों अलग-अलग बातें हैं. प्रिजन एक्ट 1894 में इन दोनों का जिक्र है. फरलो सिर्फ सजा पा चुके कैदी को ही मिलती है. जबकि, परोल पर किसी भी कैदी को थोड़े दिन के रिहा किया जा सकता है..इसके अलावा फरलो देने के लिए किसी कारण की जरूरत नहीं होती. लेकिन परोल के लिए कोई कारण होना जरूरी है. परोल तभी मिलती है जब कैदी के परिवार में किसी की मौत हो जाए, ब्लड रिलेशन में किसी की शादी हो या कुछ और जरूरी कारण..किसी कैदी को परोल देने से इनकार भी किया जा सकता है. परोल देने वाला अधिकारी ये कहकर मना कर सकता है कि कैदी को छोड़ना समाज के हित में नहीं है.

कब नहीं मिलती परोल और फरलो?

सितंबर 2020 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने परोल और फरलो के लिए नई गाइडलाइंस जारी की थी. इसमें गृह मंत्रालय ने बताया था कि किसी को परोल और फरलो कब नहीं दी जाएगी? इसके मुताबिक-

a) ऐसे कैदी जिनकी मौजूदगी समाज में खतरनाक हो या जिनके होने से शांति और कानून व्यवस्था बिगड़ने का खतरा हो, उन्हें रिहा नहीं किया जाना चाहिए.

b) ऐसे कैदी जो हमला करने, दंगा भड़काने, विद्रोह या फरार होने की कोशिश करने जैसी जेल हिंसा से जुड़े अपराधों में शामिल रहे हों, उन्हें रिहा नहीं किया जाना चाहिए.

c) डकैती, आतंकवाद संबंधी अपराध, फिरौती के लिए अपहरण, मादक द्रव्यों की कारोबारी मात्रा में तस्करी जैसे गंभीर अपराधों के दोषी या आरोपी कैदी को रिहा नहीं किया जाना चाहिए.

d) ऐसे कैदी जिनके परोल या फरलो की अवधि पूरा कर वापस लौटने पर संशय हो, उन्हें भी रिहा नहीं किया जाना चाहिए.

e) यौन अपराधों, हत्या, बच्चों के अपहरण और हिंसा जैसे गंभीर अपराधों के मामलों में एक समिति सारे तथ्यों को ध्यान में रखकर परोल या फरलो देने का फैसला कर सकती है..

TEAM VOICE OF PANIPAT

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