वायस ऑफ पानीपत (शालू मौर्या):- इस बार करवा चौथ का पर्व 1 नंवबर को मनाया जाएगा… सुहागन महिलाएं इस व्रत को बेसब्री से इंतजार करती हैं हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथी के प्रतिवर्ष आता है.. साथ ही इस दिन चंद्रमा को छलनी से देखने की बेहद खास परंपरा है जिसका पालन लंबे समय से किया जा रहा है.. वहीं करवा चौथ की तैयारी जोरों से चल रही है.. महिलाओं द्वारा जमकर खरीदी भी हो रही है.. वहीं, इस पूजा के लिए मिट्टी का करवा, छलनी और कांस के तृण का होना बेहद जरूरी होता है, लेकिन इन चीजों का क्या महत्व है और यह पूजा में क्यों आवश्यक है, यह बहुत कम लोग ही जानते हैं..
करवा चौथ के दिन महिलाएं प्रातः 4 बजे से उठकर पहले स्नान ध्यान के बाद भगवान की पूजा करती हैं.. इसके बाद रात में जब चंद्रमा उदय होता है, तब उसको अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं.. मिट्टी से बने कलश में कांस के कुछ तृण रख करके उसमें जल भर कर चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है.. मान्यता है कि कांस की तृण से संबंधित जल शीघ्र से शीघ्र देवताओं तक पहुंचता है.. करवा चौथ वाले दिन चंद्रमा को सीधे नहीं देखना चाहिए.. क्योंकि ऐसा करना वर्जित माना गया है.. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन किसी न किसी की आड़ में चंद्रमा का दर्शन करना चाहिए.. इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि छलनी से अपने पति के मुख को देखने से छलनी में सैकड़ों छेद की तरह पति की सैकड़ों वर्ष की उम्र होती है.. इसलिए इस दिन चंद्रमा और पति को छलनी से देखा जाता है..
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