वॉयस ऑफ पानीपत(देवेंद्र शर्मा)- यह जानकारी सामने आई है सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की हालिया रिपोर्ट ‘स्टेट आफ इंडियाज एन्वायरमेंट 2021 : इन फिगर’ से। यह रिपोर्ट बताती है कि भारतीय वन लकड़ी एवं गैर लकड़ी वन उत्पाद के रूप में पारिस्थितिक सेवाएं देते हैं। कई बड़े राज्यों में ये सेवाएं घट रही हैं जो इस बात का प्रमाण है कि संसाधनों का अत्यधिक दोहन हो रहा है। वर्ष 2015-16 के मुकाबले वर्ष 2016-17 और वर्ष 2017-18 में खासतौर पर यह कमी स्पष्ट रूप से देखने को मिली है। सरकारी स्तर पर हरित क्षेत्र बढ़ाने के दावे भले कितने किए जाते रहे हों, लेकिन बहुत बार पौधारोपण कागजों में ही कर दिया जाता है। शायद इसीलिए झारखंड, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ समेत 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में वन घनत्व घट रहा है। इसी वजह से इन राज्यों के वन क्षेत्र में कार्बन अवशोषण क्षमता भी घट रही है। हालांकि, दिल्ली, बिहार, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर एवं हिमाचल में कार्बन सोखने की क्षमता में पहले के मुकाबले इजाफा दर्ज किया गया है।
वन पारिस्थितिक सेवाओं में मुख्यतया तीन तत्व होते हैं–लकड़ी: इसे वनों से प्राप्त लकड़ी जैसी पारिस्थितिक संपत्ति से जोड़ा जाता है।-गैर लकड़ी वन उत्पाद: भोजन में प्रयोग होने वाले पौधे, पेय पदार्थ, चारा, ईंधन, दवाएं, फाइबर, जैव रसायन, शहद, रेशम, इत्यादि।-कार्बन अवशोषण: इससे अभिप्राय कार्बन को सोखकर उसके बदले दी जाने वाली स्वच्छ वायु से है। सुनीता नारायण (महानिदेशक, सीएसई) का कहना है कि इस स्थिति के लिए सीधे तौर पर सरकारी नीतियों की खामियां जिम्मेदार हैं। राज्य सरकारों को अपनी नीतियों और कार्यशैली दोनों में सुधार करना चाहिए। कार्बन अवशोषण पर खासतौर से ध्यान देने की जरूरत है। सिर्फ हरित क्षेत्र बढ़ाने के बजाय वन क्षेत्र का घनत्व भी बढ़ाया जाना जरूरी है। यह रिपोर्ट एक आईने की तरह है, जिसे आधार बनाकर भविष्य की कारगर नीतियां बनाई जानी चाहिए।
TEAM VOICE OF PANIPAT